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राजनीति में नफा-नुकसान तो सुना था लेकिन राजनीति में अपना ही कोई नुकसान करे यह कम सुना गया है। पिछले दिनों कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul gandhi) ने इंदौर में एक विवादित बयान दिया था जिसको लेकर अब सियासत गर्म हो चुकी है। राहुल गांधी (Rahul gandhi) ने कहा था कि ‘पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ित मुसलमानों के संपर्क में है। इससे पहले भी उन्होंने राजस्थान के अलवर में कहा था कि राहत कैंपों में रहने वाले कई दंगा पीड़ित पाकिस्तान जाना चाहते हैं’।
राहुल गांधी (Rahul gandhi) का यह बयान कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किल का सबब बन गया है। पार्टी का हर नेता इस मुद्दे पर कुछ कहने से हिचकिचा रहा है। उधर कांग्रेस के विरोधी राहुल के इस बयान को तूल देकर इसका फायदा उठाने में लगे हुए हैं। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा और समाजवादी पार्टी राहुल गांधी के इस बयान को सांप्रदायिकता से प्रेरित बता रही हैं।
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अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस जो अब से पहले धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़े हुए थी एक सांप्रदायिक पार्टी बनती जा रही है। या फिर राहुल गांधी (Rahul gandhi) का बयान उन लोगों को जगाना था जो दंगों में शिकार होते हैं और आवेश में आकर किसी पाकिस्तानी संस्था जुड़ने की कोशिश करते हैं।
आज का मुद्दा
क्या कांग्रेस अब एक सांप्रदायिक पार्टी बनकर अपने हित साधने की कोशिश कर रही है?
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