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भावनाओं के सैलाब में बहकर ‘भारत रत्न’ देने का फैसला कितना सही है ?

Today`s Controversial Issues
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हाल ही में क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने 24 सालों बाद क्रिकेट जगत से संन्यास लिया जिसके बाद सरकार ने जनता की भावुकता और सचिन के योगदान को देखते हुए उन्हें देश की सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न देने की घोषणा कर दी। सरकार के इस फैसले पर अब विवाद खड़ा होता दिखाई दे रहा है। सचिन को भारत रत्न दिए जाने के फैसले पर अब वह लोग सक्रिय हो गए हैं जो सचिन से पहले हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की मांग कर रहे थे।


जदयू नेता और सांसद शिवानंद तिवारी ने सचिन को भारत रत्न देने पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि मेजर ध्यानचंद को यह पुरस्कार क्यों नहीं दिया गया जबकि उनकी उपलब्धियां कहीं ज्यादा है। शिवानंद तिवारी की तरह ही कई लोग मानते हैं कि सचिन से पहले मेजर ध्यानचंद ‘भारत रत्न पुरस्कार’ के असली हकदार है क्योंकि उनके योगदान में सचिन से ज्यादा समर्पण और संघर्ष दिखता है। उन्होंने अकेले दम पर उस समय भारतीय खेल (हॉकी) को नई उंचाई दी जिस समय भारत गुलाम था।


आज का मुद्दा

अब सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार ने सचिन के संन्यास से उत्पन हुई भावनाओं के सैलाब में बहकर उन्हें भारत रत्न देने का फैसला लिया है ?

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