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अखिलेश यादव के नेतृत्व में 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब राज्य की समाजवादी पार्टी को प्रचंड बहुमत हासिल हुआ था तब लोग उन्हें बदलाव के वाहक के रूप में ले रहे थे, लेकिन महज एक महीने बाद ही पता चल गया कि राज्य की जनता कल्पना में जी रही है। चुनाव से पहले जिस बदलाव और सुशासन का दावा अखिलेश कर रहे थे उसमें वह पूरी तरह से विफल रहे।
कुछ इसी तरह की स्थिति दिल्ली की वर्तमान केजरीवाल सरकार की है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा का दावा है। कांग्रेस के समर्थन से बनी आम आदमी पार्टी की सरकार एक महीना पूरा कर चुकी है। जहां केजरीवाल एक महीने की रिपोर्ट कार्ड में खुद को फर्स्ट डिवीजन से पास मान रहे हैं तो वहीं विरोधी भाजपा उन्हें झूठा और जनता को गुमराह करने वाली सरकार करार दे रही है।
भाजपा के मुताबिक सरकार की कथनी और करनी में बहुत ही अंतर है। लोकपाल, महिला सुरक्षा पर जो वादा उसने दिल्ली की जनता से किया है उसमें वह पूरी तरह से विफल रही। अब यहां सवाल उठता है कि विपक्षी पार्टी के दावों में कितनी साथर्कता है। ‘आप’ का कहना है कि सरकार तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी बनी लेकिन इनमें से कौन सी सरकार काम करने के मामले में दिल्ली की केजरीवाल सरकार की तरह सक्रिय रही। सवाल यह भी है कि क्या एक महीने के अंदर किसी सरकार की अच्छाई और बुराई का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आज का मुद्दा
पिछले एक महीने में कितनी खरी उतरी केजरीवाल की सरकार ?
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