- 88 Posts
- 153 Comments
आजादी के इतने सालों बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को छोड़कर राज्यों में ऐसी कोई सरकार नहीं होगी जिसने व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर वैधानिक और संवैधानिक संस्थाओं की उपेक्षा करके चुनौती दी हो। आज इसी तरह के आरोप ‘आप’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर लगाए जा रहे हैं।
हालिया मुद्दे को देखें तो एक जिम्मेदार मुख्यमंत्री होने के नाते अरविंद केजरीवाल दिल्ली में भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल बिल पास कराना चाहते हैं, लेकिन अरविंद अपने मकसद को पूरा करने के लिए जो तरीका अपना रहे हैं उस पर विवाद खड़ा हो चुका है। पिछले दिनों दिल्ली की सरकार को ही केंद्र में रखकर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि कोई भी कानून संविधान के दायरे में बनना चाहिए और संविधान का सम्मान करना हर पार्टी का कर्तव्य है।
उल्लेखनीय है केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते अगर सरकार दिल्ली विधानसभा में कोई बिल लेकर आती है तो इस तरह के बिल को पास करने के लिए केंद्र की मंजूरी जरूरी है। 2002 के गृहमंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि दिल्ली सरकार को किसी भी नए कानून के प्रस्ताव को उप−राज्यपाल को भेजना होगा, जिसे उप−राज्यपाल गृह मंत्रालय को भेजेंगे। जिसका उल्लंघन केजरीवाल की सरकार पहले ही कर चुकी है, लेकिन “आप” का मानना है कि जिस नियम की दुहाई आज दी जा रही है उसके तहत कभी भी बिल को कानून का रूप नहीं दिया जा सकता। उनके अनुसार केंद्र कभी भी नहीं चाहेगा कि जनलोकपाल बिल के जरिए उन्हीं के मंत्रियों पर ही कार्यवाही हो।
आज का मुद्दा
क्या नियम के दायरे में रहकर काम करना सही है या फिर काम का होना सही है ?
Read Comments