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“भाजपा के तीन धरोहर अटल, आडवाणी और मुरली मनोहर -” आज यह तीनों पूरी तरह से हाशिए पर जा चुके हैं, जबकि पार्टी पर ‘नमो-नमो’ (नरेंद्र मोदी) हावी हो चुका है। यह बात हाल-फिलहाल आए दो बयानों से प्रमाणित हो जाता है।
आडवाणी के बाद अब बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने अपना दुखड़ा मीडिया के सामने रखा है। उन्होंने अपने एक बयान में कहा कि “पुण्य किया तो भारत में जन्म मिला वाराणसी में पला बढ़ा, लेकिन पाप किया था, जो संसद में बैठना पड़ा”। जानकारों की मानें तो पार्टी का वरिष्ठ नेता इस तरह का बयान उस स्थिति में देता है जब उसने नैतिक और अनैतिक काम करके अपनी पार्टी को मजबूती प्रदान की हो, लेकिन बाद में पार्टी ही उसे दरकिनार कर देती है। आपको बताते चलें वाराणसी सीट पर इस समय भाजपा में नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी की उम्मीदवारी पर मंथन चल रहा है। फिलहाल यह सीट मुरली मनोहर जोशी के पास है।
दूसरा बयान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत का है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक संघ प्रमुख ने अपने प्रचारकों से कहा कि उनका काम ‘नमो-नमो‘ करना नहीं है। भागवत ने प्रचारकों को सलाह दी है कि वे व्यक्ति-केन्द्रित प्रचार अभियान का हिस्सा न बनें। उनका निशाना सीधे बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर था। मोदी को लेकर आरएसएस में इस तरह के बयान पहले भी आ चुके हैं।
अब सवाल उठता है कि एक तरफ जहां भाजपा दूसरी पार्टी के नेताओं को बेहिचक अपनी पार्टी में शामिल कर रही है वहीं दूसरी तरफ पार्टी की बुनियाद रखने वाले कद्दावर नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा रही है। तो क्या इसके पीछे ‘नमो’ सोच है?
आज का मुद्दा
कब तक जारी रहेगा भाजपा में अंतर्विरोध ?
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