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लोकसभा चुनाव करीब है, इस लिहाज से राजनैतिक सरगर्मियां बड़ी तेजी से बदल रही हैं। सीटों के बंटवारों को लेकर कब किस उम्मीदवार की किस्मत बदल जाए या फिर किसका पत्ता कट जाए किसी को नहीं पता। सालों से उम्मीद लगाए एक जमीन से जुड़े कायकर्ता को पता चलता है कि जिस सीट के लिए वह मेहनत कर रहा है, असल में उस सीट को उसकी आंखों के सामने बॉलीवुड अभिनेता-अभिनेत्री, खिलाड़ी, मंत्रियों और नेताओं के बेटे या फिर दूसरी पार्टी के बागी नेताओं को दे दी जाती है। तब वहां उसे अपने उस फैसले पर दुख होता है कि आखिर वह पार्टी के साथ जुड़ा ही क्यों ?
दुख की बात यह है कि राजनैतिक पार्टियों के बड़े आलाकमान दागी, बागी नेताओं और फिल्मी स्टार तथा खिलाड़ियों को जिताने के लिए अपने इन्हीं कार्यकर्ताओं से मेहनत करने की बात कहते हैं। इस तरह के उपेक्षित कार्यकर्ता न केवल राष्ट्रीय पार्टियों में हैं बल्कि क्षेत्रीय और हाल ही में एक राजनैतिक विकल्प के रूप में जनता के सामने आने वाली आम आदमी पार्टी में भी हैं। कार्यकर्ताओं द्वारा जगह-जगह अपनी पार्टी के ही खिलाफ किए जा रहे प्रदर्शन से यह जगजाहिर हो जाता है कि राजनैतिक दलों को जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं है। वह इन पर दांव खेलने की बजाय अपराधियों और अनुभवहीन अभिनेताओं तथा खिलाड़ियों पर दांव खेलना पसंद करते हैं।
आज का मुद्दा
सच्चा नेता कौन: जमीन से जुड़ा कार्यकर्ता या फिर फिल्मी स्टार और मंत्री का बेटा ?
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