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चुनाव नजदीक आते ही ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए आज राजनीति पार्टियां तरह-तरह के हथकंडे अपना रही हैं। अपने विरोधियों को गलत आरोपों में फंसाना, उन पर लांछन लगाना, धन और बल से मतदाताओं की खरीद-फरोख्त करना आदि यह आज के समय में बिलकुल ही आम हो चुका है। यहां तक की बड़ी संख्या में मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने के लिए ये राजनीतिक दल धर्म के ठेकेदारों का भी सहारा लेते हैं।
बीते दिनों एक खबर आई जिसमें खुद को धर्मनिरपेक्ष पार्टी कहने वाली कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने जामा मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अहमद बुखारी के साथ मुलाकात की। विरोधी पार्टी भाजपा ने कांग्रेस अध्यक्ष पर चुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश का आरोप लगाया और इसकी शिकायत चुनाव आयोग में कर दी। उन पर सांप्रदायिकता फैलाने का भी आरोप लगा।
वैसे सांप्रदायिकता फैलाने के मामले में बीजेपी नेता भी कुछ कम नहीं हैं। वह शायद भूल गए हैं कि जब वह बाबा रामदेव जैसे धर्म के ठेकेदारों से मंच साझा करते हैं तो क्या इससे वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होता। यही नहीं, वर्तमान में ऐसे कम ही या बिलकुल न के बराबर राजनीति दल रह गए हैं, जो मतदाताओं को लुभाने के लिए धर्म और जाति का सहारा नहीं लेते। अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या आज के समय में ऐसी कोई भी पार्टी नहीं है जो देश के असल मुद्दों पर राजनीति करे। अगर नहीं! तो जनता किसको वोट दे?
आज का मुद्दा
देश के असली मुद्दों को छोड़ नफरत की राजनीति करने वालों को कैसे चुनें मतदाता?
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