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क्या केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ‘आप’ को ले डूबेगी?

Today`s Controversial Issues
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‘अब पछताए होत क्या जब चीड़िया चुग गई खेत’. गुरिल्ला अंदाज में अपने विरोधियों के दांत खट्टे करने वाले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल आखिरकार मान चुके हैं कि दिल्ली का मुख्यमंत्री पद छोड़ना एक सही फैसला नहीं था. उन्होंने कहा कि सरकार से इस्तीफा देने में जल्दबाजी हुई. केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी को ज्यादा जोश में न आकर किसी बेहतर समय पर सरकार से इस्तीफा देना चाहिए था.


उम्मीद से बिलकुल ही विपरीत जिस तरह से अरविंद केजरीवाल दिसंबर महीने में दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए थे, उससे तो यही लग रहा था कि आने वाले वक्त में केजरीवाल केंद्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. तब के सर्वे भी यही बता रहे थे कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में ‘आप’ के बेहतर प्रदर्शन का फायदा लोकसभा चुनाव में खासकर शहरों में जरूर देखने को मिलेगा.


अब यहां सवाल उठता है कि इस बीच ऐसा क्या हुआ कि केजरीवाल और उनकी पार्टी की लोकप्रियता बढ़ने की बजाय और घटती गई. जानकार मानते हैं कि केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने का जो फैसला लिया था उसमें कहीं न कहीं उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा परिलक्षित हो रही थी. वह भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर देश के सर्चोच्च पद पर पहुंचना चाहते थे. इसलिए मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने जल्दीबाजी में फैसले लिए ताकि लोकसभा चुनाव आते-आते जनता में उनकी छवि स्वच्छ राजनेता की बने. विपक्षी पार्टियों ने इसी चीज का लाभ उठाते हुए उन पर लगातार हमले किए.


वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. केजरीवाल ने भले ही फैसले लेने में जल्दबाजी की, लेकिन उनका मकसद कभी भी कोई पद हासिल करना नहीं रहा है. वह आज भी केजरीवाल को साफ- सुथरी छवि वाला राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं. यह बात अगल है कि वह अपनी बात को जनता के सामने सही तरीके से नहीं रख पाए.



आज का मुद्दा

क्या केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ‘आप’ को ले डूबेगी ?


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